गरीबी, ताने और तक़लीफ़ों के बीच जन्मा एक बच्चा —
जिसने स्कूल की खिड़की के बाहर खड़े होकर पढ़ाई की,
और एक दिन उसी देश का उपराष्ट्रपति बन गया।
यह सिर्फ़ संघर्ष की नहीं, आत्मविश्वास और उम्मीद की कहानी है,
जो सिखाती है कि “अगर इरादा सच्चा हो, तो शून्य भी शिखर बन सकता है।”